अथर्ववेद, हिन्दू धर्म के चार वेदों में से एक, अपने विशिष्ट मन्त्रों के लिए प्रसिद्ध है। इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से विभिन्न विषयों जैसे चिकित्सा, विज्ञान, और दर्शन से संबंधित है, साथ ही इसमें देवताओं की स्तुति भी शामिल है। अथर्ववेद की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह सामाजिक और राजनीतिक जीवन में शांति और समृद्धि की स्थापना के लिए ज्ञान प्रदान करता है। कहा जाता है कि जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद का ज्ञाता विद्वान् शांति के कार्यों में लगा रहता है, उसका राज्य निरंतर उन्नति करता है और उपद्रव रहित होता है।
यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः।
निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्।।
अथर्ववेद हिंदू धर्म के चार वेदों में से एक है, और इसका महत्व कई दृष्टिकोणों से है:
आध्यात्मिकता और ज्ञान: अथर्ववेद में अनेक मंत्र, सूक्त और प्रार्थनाएँ हैं जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और आध्यात्मिकता को विकसित करने में सहायक हैं।
चिकित्सा और आयुर्वेद: इसमें स्वास्थ्य, रोग, और उपचार के बारे में भी जानकारी दी गई है। आयुर्वेद की नींव इसी वेद में देखी जा सकती है।
सामाजिक जीवन: अथर्ववेद में समाज के विभिन्न पहलुओं जैसे विवाह, परिवार, और सामुदायिक जीवन पर भी ध्यान दिया गया है। यह जीवन के सामाजिक और नैतिक पहलुओं को समझने में मदद करता है।
जादू और तंत्र: इसमें जादू और तंत्र के मंत्र भी शामिल हैं, जो प्राचीन भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। संस्कृति और परंपरा: अथर्ववेद भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है, जो धार्मिक रीतियों और परंपराओं को संरक्षित करता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी: इसमें वर्णित कुछ तत्त्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्राचीन अवधारणाओं को दर्शाते हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
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