महाभारत भारत का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जिसे स्मृति के इतिहास वर्ग में रखा गया है। इसे हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है और यह विश्व का सबसे लंबा महाकाव्य है। महाभारत धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसे भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय स्रोत माना जाता है। महाभारत में लगभग 1,10,000 श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी की तुलना में लगभग दस गुना अधिक हैं। इस ग्रंथ की रचना का श्रेय परंपरागत रूप से वेदव्यास को दिया जाता है। इसकी ऐतिहासिक वृद्धि और संरचना को समझने के लिए कई अध्ययन किए गए हैं।
महाभारत की रचना की अवधि को तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी के बीच माना जाता है। सबसे पुराने संरक्षित भाग 400 ईसा पूर्व से भी पुराने नहीं हैं। इसके मूल घटनाएँ संभवतः 9वीं और 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच की हैं, जबकि इसका पाठ प्रारंभिक गुप्त राजवंश के समय (लगभग 4वीं शताब्दी CE) में अपने अंतिम रूप में पहुंचा। महाभारत में न केवल ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन है, बल्कि इसमें भगवद्गीता जैसे पवित्र ग्रंथ भी शामिल हैं। यह ग्रंथ भारतीय संस्कृति और धर्म का अभिन्न हिस्सा है, जो आज भी लोगों के जीवन में मार्गदर्शन करता है। महाभारत की कथाएँ, नैतिकता, और दार्शनिकता आज भी शिक्षा और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।
महाभारत में अनेक विषयों का विस्तृत वर्णन मिलता है, जिसमें शामिल हैं: न्याय: न्याय और धर्म के सिद्धांतों का विश्लेषण। शिक्षा: ज्ञान के विभिन्न आयामों और शिक्षण विधियों का उल्लेख। चिकित्सा: स्वास्थ्य और चिकित्सा के प्राचीन उपाय। ज्योतिष: तारे और ग्रहों की स्थिति का अध्ययन। युद्धनीति: युद्ध की रणनीतियाँ और नीतियाँ। योगशास्त्र: योग के विभिन्न प्रकार और उनके लाभ। अर्थशास्त्र: धन प्रबंधन और आर्थिक सिद्धांत। वास्तुशास्त्र: भवन निर्माण के लिए दिशानिर्देश। शिल्पशास्त्र: कला और शिल्प के विविध पहलू। कामशास्त्र: प्रेम और मानव संबंधों के सिद्धांत। खगोलविद्या: आकाशीय पिंडों का अध्ययन। धर्मशास्त्र: धर्म और आचार-व्यवहार के नियम।
महाभारत की रचना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है, जिसे प्राचीन भारतीय संस्कृति और समाज की गहराई से समझने के लिए आवश्यक माना जाता है। इस महाकाव्य का श्रेय वेदव्यास को दिया जाता है, जिन्हें कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाना जाता है।
रचना काल: महाभारत की रचना का समय स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से शुरू होकर चौथी शताब्दी सीई तक के बीच में संकलित किया गया माना जाता है। इसमें मूल घटनाएँ 9वीं और 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व की मानी जाती हैं।
संरचना: महाभारत का पाठ लगभग 1,10,000 श्लोकों में बंटा हुआ है, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य बनाता है। इसके विभिन्न भागों में कथा, उपकथा, और संवाद शामिल हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ: महाभारत न केवल एक कथा है, बल्कि यह एक गहन दार्शनिक ग्रंथ भी है, जिसमें मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं, नैतिकता, धर्म, और नीति की चर्चा की गई है।
कथा का प्रारंभ: महाभारत की कथा का आरंभ राजा शांतनु से होता है, जिन्होंने गंगा देवी से विवाह किया। उनके दो पुत्र हुए—भगवान भीष्म और चित्तू। बाद में, शांतनु ने सत्यवती से विवाह किया, जिससे दो पुत्र, धृतराष्ट्र और पांडु, हुए। धृतराष्ट्र अंधे थे और पांडु के पांच पुत्र हुए, जिन्हें पांडव कहा जाता है: युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, और सहदेव। कौरवों का जन्म: धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने भी 100 पुत्रों को जन्म दिया, जिन्हें कौरव कहा जाता है। दुर्योधन, कौरवों का सबसे बड़ा पुत्र, पांडवों से ईर्ष्या करता है। राज्य का बंटवारा: पांडवों और कौरवों के बीच संघर्ष की शुरुआत एक खेल से होती है, जिसमें दुर्योधन पांडवों को हराकर उन्हें अज्ञातवास में भेज देता है। वापसी पर, पांडव अपने अधिकारों की मांग करते हैं, लेकिन कौरव उन्हें युद्ध के लिए मजबूर करते हैं। कुरुक्षेत्र का युद्ध: युद्ध कुरुक्षेत्र में होता है, जिसमें दोनों पक्षों के कई महान योद्धा शामिल होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन के सारथी के रूप में युद्ध में भाग लेते हैं और उन्हें भगवद्गीता का ज्ञान देते हैं। युद्ध में भयंकर रक्तपात होता है, जिसमें सभी प्रमुख पात्रों की मृत्यु होती है। युद्ध का परिणाम: युद्ध के अंत में, पांडव विजयी होते हैं, लेकिन यह जीत भयानक कीमत पर आती है। अंत में, युधिष्ठिर धर्म के अनुसार राज्य का शासन संभालते हैं और सभी पांडव स्वर्ग के लिए प्रस्थान करते हैं। सारांश: महाभारत केवल एक युद्ध की कथा नहीं है; यह धर्म, नैतिकता, परिवार, और सत्ता की जटिलताओं का गहन अध्ययन है। इसकी कहानियाँ और पात्र आज भी जीवन के विभिन्न पहलुओं में प्रासंगिक हैं।
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