ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे प्राचीन ग्रंथ है और इसे वेदों में सबसे पहले माना जाता है। इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त और लगभग 10,462 मंत्र हैं, हालांकि मंत्रों की संख्या के बारे में विद्वानों के बीच कुछ भिन्नता है।
देवताओं की स्तुति: ऋग्वेद में विभिन्न देवताओं की स्तुति की गई है, और इनमें यज्ञ के लिए मंत्र शामिल हैं, जो देवताओं को आह्वान करने के लिए उपयोगी होते हैं। भाषाई महत्व: ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की पहली रचनाओं में से एक मानते हैं। यह वैदिक संस्कृत की सबसे पुरानी ज्ञात पुस्तक है। धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ: यह ग्रंथ न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऋषियों का योगदान: ऋग्वेद की रचनाओं को पढ़ने वाले ऋषियों को होत्र कहा जाता है। इन ऋषियों ने अपने ज्ञान और अनुभव को वेद में संकलित किया। मौखिक परंपरा: ऋग्वेद के श्लोकों का मौखिक रूप से प्रसारण किया गया, जो इसे एक जीवंत और अनवरत ग्रंथ बनाता है। यह ग्रंथ संभवतः दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में रचित हुआ था।
ऋग्वेद न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, दार्शनिकता और भाषा का भी अभिव्यक्ति है। इसकी रचनाएँ आज भी समाज में प्रासंगिकता रखती हैं और इसकी शिक्षाएँ अनंत काल से लोगों को मार्गदर्शन प्रदान करती आ रही हैं।
ऋग्वेद का कालनिर्धारण एक जटिल विषय है क्योंकि इसके रचनाकाल को लेकर विद्वानों में भिन्न-भिन्न मत हैं। हालांकि, अधिकांश विद्वान यह मानते हैं कि ऋग्वेद की रचना लगभग 1500-1200 ईसा पूर्व के बीच हुई थी। इसे वैदिक काल का आरंभिक साहित्य माना जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसकी प्रारंभिक रचनाएँ 2000 ईसा पूर्व या उससे भी पहले की हो सकती हैं। दार्शनिक और भाषाई साक्ष्य इस बात का संकेत देते हैं कि इसका थोक हिस्सा भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में रचा गया था।
दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व: भाषायी और पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, ऋग्वेद की रचना उत्तर-पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप में हुई थी। इस काल में वैदिक आर्यों की सभ्यता का विकास हो रहा था, और वे मुख्यत: सरस्वती और सिंधु नदियों के किनारे बसे हुए थे।
प्रारंभिक आर्य सभ्यता: ऋग्वेद के मंत्रों में आर्यों के जीवन का वर्णन मिलता है, जिसमें उनका कृषि कार्य, पशुपालन, युद्ध और देवताओं की पूजा शामिल है। आर्य लोग यज्ञ और देवताओं की स्तुति के माध्यम से जीवन की विभिन्न कठिनाइयों का सामना करते थे और ऋग्वेद के मंत्र उन्हीं यज्ञों में प्रयुक्त होते थे।
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