यजुर्वेद हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रंथ है और इसे चार वेदों में से एक माना जाता है। यह मुख्य रूप से यज्ञ की प्रक्रिया के लिए गद्य और पद्य मंत्रों का संग्रह है। यजुर्वेद का महत्व इसके यज्ञ संबंधी मंत्रों में निहित है, जिन्हें 'यजुस' कहा जाता है। इसमें ऋग्वेद के 663 मंत्र भी शामिल हैं, लेकिन इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यह अधिकतर गद्यात्मक है। यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के क्षेत्र में हुई थी। इसके रचनाकाल को लेकर विद्वानों का मत है कि यह 1400 से 1000 ई. पू. के बीच लिखा गया।
गद्य और पद्य मंत्र: यजुर्वेद में मुख्य रूप से गद्यात्मक मंत्र होते हैं, जबकि कुछ पद्यात्मक मंत्र ऋग्वेद या अथर्ववेद से लिए गए हैं। यज्ञ प्रक्रिया: यह वेद यज्ञ की विधियों और उन मंत्रों का संकलन करता है जो यज्ञ के दौरान उच्चारित किए जाते हैं, जिससे साधक को आवश्यकतानुसार लाभ प्राप्त होता है।
यजुर्वेद एक प्रमुख वेद है जो हिन्दू धर्म के ग्रंथों में से एक है। इसे मुख्य रूप से यज्ञ और अनुष्ठानों के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें मंत्रों के साथ-साथ अनुष्ठान संबंधी निर्देश भी शामिल हैं। यजुर्वेद को दो मुख्य भागों में बांटा गया है: शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद।
शुक्ल यजुर्वेद : इसमें मंत्रों का एक सुसंगठित संग्रह है जो यज्ञों में उपयोग होता है। यह अधिकतर सटीकता और क्रमबद्धता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
कृष्ण यजुर्वेद : इसमें मंत्रों के साथ-साथ विस्तृत विवरण और परंपराएं भी शामिल हैं। इसे शिक्षकों द्वारा मौखिक रूप से सिखाया जाता था।
यजुर्वेद का महत्व : यह धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसकी व्याख्या के लिए कई टीकाएँ और ग्रंथ उपलब्ध हैं।
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