श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत युद्ध के आरंभ से पहले भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों का संग्रह है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक शामिल हैं। गीता का ज्ञान लगभग 5168 वर्ष पूर्व (3145 ई. पू.) बोला गया था। गीता को भारतीय धार्मिक साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त है, और इसे प्रस्थानत्रयी का हिस्सा माना जाता है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी शामिल हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार, गीता का महत्व उपनिषदों के समान है। उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दूध कहा गया है, यह दर्शाते हुए कि गीता उपनिषदों की अध्यात्म विद्या को स्वीकार करती है।
महाभारत के युद्ध के समय, जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं, तब श्रीकृष्ण उन्हें कर्म और धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। यही उपदेश भगवत गीता नामक ग्रंथ में संकलित किए गए हैं। गीता न केवल धर्म और कर्म के मार्ग को दर्शाती है, बल्कि यह मानवता के लिए गहन आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत भी है।
श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश आज के आधुनिक जीवन में अत्यंत प्रासंगिक है। इसमें दिए गए सिद्धांतों और उपदेशों का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है, जैसे कि व्यक्तिगत विकास, प्रबंधन, और मानसिक स्वास्थ्य। धर्म और कर्म: गीता में कर्म करने का महत्व बताया गया है, जो आज के प्रतिस्पर्धी युग में आवश्यक है। यह सिखाती है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। आंतरिक संतुलन: गीता मानसिक तनाव और उलझनों से बाहर निकलने के लिए आंतरिक संतुलन बनाने की सलाह देती है। आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में, यह सिखाना कि कैसे ध्यान और साधना के माध्यम से मानसिक शांति प्राप्त की जा सकती है, बेहद महत्वपूर्ण है। निर्णय लेने की प्रक्रिया: गीता में ज्ञान और विवेक से निर्णय लेने पर जोर दिया गया है। यह विशेष रूप से व्यवसाय और प्रबंधन में महत्वपूर्ण है, जहां सही निर्णय लेना सफलता की कुंजी है। समाज और मानवता: गीता मानवता के प्रति करुणा और सेवा का महत्व बताती है। यह संदेश आज के समय में सामूहिक कल्याण और सामाजिक न्याय की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और आत्मा के सही मार्ग को पहचानने के लिए एक गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। गीता का मुख्य सन्देश निम्नलिखित बिंदुओं में संक्षिप्त किया जा सकता है
कर्म का महत्व: गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म करने का उपदेश दिया है, जो कि मनुष्य का धर्म है। व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी फल की इच्छा के करना चाहिए। यह कर्म करो, फल की चिंता मत करो के सिद्धांत पर आधारित है। आत्मा और शरीर: गीता यह बताती है कि आत्मा अमर है और शरीर क्षणिक है। आत्मा का स्वरूप शाश्वत है, और इसे समझना जीवन के दुखों से मुक्ति का मार्ग है। धर्म और अधर्म: गीता में धर्म का पालन करने की प्रेरणा दी गई है, जो समाज और मानवता के लिए आवश्यक है। अधर्म से दूर रहना और सच्चाई का अनुसरण करना महत्वपूर्ण है। ज्ञान और विवेक: गीता में ज्ञान की प्राप्ति और विवेक से निर्णय लेने की बात की गई है। ज्ञान व्यक्ति को सही मार्ग दिखाता है और गलतियों से बचने में मदद करता है।
भक्ति का महत्व: गीता में भक्ति और श्रद्धा के माध्यम से भगवान की कृपा प्राप्त करने की बात कही गई है। भक्ति के द्वारा मनुष्य अपने हृदय की शुद्धता और संतुलन प्राप्त कर सकता है। योग और साधना: गीता में विभिन्न प्रकार के योग—कर्म योग, ज्ञान योग, और भक्ति योग—का वर्णन किया गया है। ये साधन मनुष्य को आत्मा के स्वरूप को पहचानने और परम सत्य को अनुभव करने में मदद करते हैं। जीवन की चुनौती: गीता यह समझाती है कि जीवन में चुनौतियाँ और संघर्ष अनिवार्य हैं, लेकिन इनका सामना धैर्य और समझदारी से करना चाहिए।
श्रीमद्भगवद्गीता हिंदी में pdf | Srimad Bhagavad Gita PDF in Hindi